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materiali  audiovisivi  con  trascrizione

दुष्ट-पहाड़ी कौआ 

 

किसी समय की बात है । एक कबूतर और एक पहाड़ी कौआ रहते थे । वे दोनों मित्र थे । दक्षिण भारत के एक गाँव के बाहर स्थित एक बड़े से बरगद पर वे रहते थे । जाड़े के दिन थे । दोनों पक्षियों को कोई दाना नहीं मिला था । इसलिए वे भूखे थे । एक दिन पहाड़ी कौए ने कहा - मित्र हम अगले गाँव चलते हैं, मुझे विश्वास है हमें वहाँ खाना ज़रूर मिलेगा । कबूतर मान गया और दूसरे दिन दोनों मित्र अपनी यात्रा पर चल पड़े । रास्ते में उन्होंने एक आदमी को घड़े पर ताज़ी गाढ़ी दही बाज़ार में बेचने ले जाते हुए देखा । उनके मुँह में पानी बढ़ाया और वे ललचाने लगे कि उन्हें भी थोड़ा सा खाने मिल जाए । इसलिए वे आदमी के पीछे-पीछे उड़ने लगे । थोड़ी देर बाद वह आदमी एक पेड़ के नीचे दुश्राम करने रुक गया । उसने घड़ा नीचे रखा और उसके पास ही लेट गया । पहाड़ी कौआ और कबूतर भी थक गए थे और वे पास के पेड़ पर बैठ गए । कौए ने दही देखकर कहा - मित्र, यही अच्छा मौका है, हमें थोड़ी दही... कबूतर बोला - मित्र, वह हम कैसे कर सकते हैं ? कौए ने हँसकर कहा - हे हे हे । मुझे देखो, आसान है । फिर वह नीचे घड़े की ओर झपटा, मुँह-भर दही ली और मुड़कर ऊपर आया । उसे ताज़ी दही बड़ी स्वादिष्ट लगी । इसलिए वह बार-बार नीचे झपटने लगा । आदमी जल्दी ही जग गया और आगे बढ़ा । कबूतर ने कहा - मित्र और अधिक दही लेनी का प्रयास नहीं करना, नहीं तो तुम मुश्किल में पड़ोगे । कौआ हँस पड़ा और बोला - हे हे हे । तकलीफ़ ? दही का स्वाद तुमने नहीं लिया है, इसलिए ऐसा कह रहे हो । जाओ, कोशिश करो । तुम भी उसे खाए बग़ैर रह नहीं । कबूतर ने कहा - नहीं, धन्यवाद मित्र, तुमने काफ़ी खा लिया । चोरी करना गलत है । कौए ने कहा - वाह ! तुम बड़े डरपोक हो । जब मैं उस पर उड़ रहा हूँगा तब वह आदमी मुझे देख भी नहीं सकता । कबूतर की चेतावनी अनसुनी कर कौआ बार-बार दही खाता रहा । आदमी जल्दी ही बाज़ार पहुँचा । उसने, जैसे ही घड़ा नीचे रखा, तो घड़े को आधा खाली देख उसे बड़ा धक्का लगा । यह देखने के लिए कि दही किसने चुरायी है, उसने आसपास नज़र दौड़ायी । तभी उसने इस काले कौए की चोंच पर सफ़ेद दही लगी देखी । आदमी चिल्लाया - धूर्त काले कौए, तुमने मेरी दही चुरायी ? मैं तुम्हें पकडूँगा । उसने एक पत्थर लिया और कौए को निशाना बनाकर, उसकी ओर फेंका । कौआ हट गया, मगर कबूतर बच नहीं सका । पत्थर कबूतर को लगा और वह घायल होकर, ज़मीन पर गिर पड़ा । मित्र की चिन्ता किये बग़ैर, कौआ उड़ गया । बेचारा कबूतर दर्द से कराहता रहा और बोला - काश कि मैं पहले ही समझ गया होता कि धूर्त लोगों से मित्रता करना धूर्त होने जैसा ही है !

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