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Traduzioni hindĪ-italiano con testo a fronte

भटकती राख

गाँव में फसल-कटाई पूरी हो चुकी थी| हँसते-चहकते किसान घरों को लौट रहे थे| भरपूर फसल उतरी थी| किसानों के कोठे अनाज से भर गए थे| गृहिणियों के होंठों पर संगीत की धुनें फूट रही थीं| दूर-दूर तक फैली धरती की कोख इस्से भी बढ़ियाँ फसल देने के लिए मानो कसमसा रही थी|

रात उतर आई थी और घर-घर में लोग खुशियाँ मना रहे थे| जब एक घर की खिड़की में खड़ी एक किसान युवती, जो देर तक मन्त्र-मुग्ध-सी बाहर का दृश्य देखे जा रही थी, सहसा चिल्ला उठी, ‌"देखो तो खेत में जगह-जगह यह क्या चमक रहा है‌‌?"

उसका युवा पति भागकर उसके पास आया। बाहर खेत में जगह‌‌‌-जगह झिलमिल-झिलमिल करते जैसे सोने के कण चमक रहे थे‌।

‌‌‌"यह क्या झिलमिला रहा है? क्या ये सचमुच सोने के कण हैं?‌" पत्नी ने बड़ी व्यग्रता से पूछा।

"सोना कभी यों भी चमकता है‌? नहीं, यह सोना नहीं है‌‌।"

"फिर क्या है?‌"

उसका पति चुप रहा। उसने स्वयं इस चमकते कणों को पहले कभी नहीं देखा था।

पीछे कोठरी में बैठी किसान की बूढ़ी दादी बोल उठी, ‌"यह सोना नहीं बेटी, यह राजा की राख है, कभी‌-कभी चमकने लगती है।"

"राजा की राख? क्या कह रही हो दादी-माँ, कभी राख भी चमकती है?" किसान की पत्नी ने कहा और लपककर बाहर जाने को हुई, "मैं इन्हें अभी बटोर लाती हूँ!"

*         *         *         *         *         *         *

खेत की मुँडेर के पास उसे एक कण चमकता नज़र आया। युवती पहले तो सहमी-सहमी-सी उसे देखती रही। फिर हाथ बढ़ाकर उसे उठा लिया और दूसरे हाथ की हथेली पर रख लिया। पर हथेली पर पड़ते ही वह कण जैसे बुझ गया और उसकी चमक जाती रही। किसान की पत्नी के आश्चर्य की सीमा न रही। फिर वह भागती हुई खेत के अंदर चली गई, जहाँ कुछ दूरी पर एक और कण चमक रहा था। इस बार भी वही कुछ हुआ, जो पहले हुआ था। हथेली पर रखते ही वह बुझ गया और उसकी कान्ति समाप्त हो गई।

किसान की पत्नी हतबुद्धि इधर-उधर देखने लगी। खेत में अभी भी जगह-जगह कण चमक रहे थे। बुझे हुए दो जरों को हाथ में उठाए वह भागती हुई तीसरे ज़र्रे के पास गयी, पर उसकी भी वही गति हुई, जो पहले दो कणों की हुई थी। कुछ देर बाद किसान युवती हथेली पर बुझ हुए तीन ज़र्रे उठाए हताश-सी घर लौट आयी।

"मगर पहले इतने चमक रहे थे, दादी माँ, मैं सच कहती हूँ।" उसने उद्विग्न होकर कहा।

"देखा न, यह सोना नहीं है बेटी, राजा की राख है। "बुढ़िया ने दोहराकर कहा।

"राख भी कभी यों चमकती है दादी-माँ, क्या कह रही हो‌? और फिर मेरे हाथ पर पड़ते ही बुझ गई।

कौन राजा? किसकी राख?" युवती ने हैरन होकर पूछा।

“जब में छोटी थी मैंने अपनी दादी के मुँह से उसका किस्सा सुना था I बहुत पुरानी बात है...” और बुढ़िया राजा का किस्सा सुनाने लगी I

कहते हैं किसी शहर में एक युवक रहा करता था I बड़ा सुन्दर था और बड़ा सहासी था I अपनी माँ-बाप का एक ही बेटा था I उसके माँ-बाप उसे देखते नहीं थकते थे I सगे सम्बन्धियों की आँखे भी उस पर से हटाए नहीं हटती थीं I सभी को उस पर बड़ा गर्व था I उससे उन्हें बड़ी-बड़ी आशाएँ थीं कि बड़ा होगा, तो माँ-बाप का नाम रोशन करेगा, बड़ा नाम कमाएगा I

पर जब वह बड़ा हुआ, तो एक रात अचानक घर से भाग गया I घर में किसी को ख़बर नहीं हुई I सुबह जब माँ-बाप को पता चला, तो वे बहुत घबराए और उसे ढ़ूंढ़ने निकले I दिन-भर भटकते रहे, आखिर वह उन्हें एक गाँव में किसी झोपड़े के वाहर खड़ा मिला I

“तुम यहाँ क्या कर रहे हो जी ?” माँ ने विगडकर पूछा, “हम दिन-भर तुम्हें खोजते रहे हैं I ”

युवक बड़ा सरल-स्वभाव था I उसका दिल शीशे की तरह साफ था I माँ की ओर देखकर बोला, “रात को मैं सो रहा था, माँ, जब मुझे लगा जैसे बाहर कोई रो रहा है I मैं उठकर बाहर आ गया, मगर वहाँ कोई नहीं था I पर रोने की आवाज़ बराबर आ रही थी I मैं उस आवाज़ के पीछे-पीछे जाने लगा और उसे ढ़ूंढ़ता हुआ यहाँ आ पहुंचा I मैंने देखा, रोने की आवाज़ इस झोंपड़े में से आ रही थी I ”

बेटे की बात सुनकर माँ चिन्तित-सी उसके चेहरे की ओर देखने लगी, “अष घर लौट चलो बेटो ! दिन-भर न कुछ खाया, न पिया, यहाँ भटक रहे हो !”

“मैं घर नहीं जाऊंगा, माँ ! ” युवक ने कहा I

“घर नहीं चलोगे, क्यों भला ? ”

बेटे ने पहले जैसी सरलता से उत्तर दिया, “मैं घर कैसे जा सकता हूँ माँ, झोंपड़े से रोने की आवाज़ जो आ रही है ! ”

और अपने बाप के चेहरे की ओर देखने लगा I बाप को अपने बेटे की आखों में असीम वेदना नज़र आई I वह देर तक अपने बेटे की ओर देखता रहा I फिर धीरे से अपनी पत्नी के कन्धे पर हाथ रखा और उसे धीरे-धीरे घर की ओर ले जाने लगा I

“तेरा बेटा घर लौटकर नहीं आएगा I ” उसने कहा I

माँ सिर से पैर तक काँप उठी, “तो कब लौटेगा ? ”

“शायद कभी नहीं लौटेगा I जो लोग एक बार यह रोना सुन लेते हैं, वे घर नहीं लौटते I ”

माँ की आँखों में आंसू भर आए और वह फफक-फफककर रोने लगी I

बूढ़े बाप ने सच ही कहा था I वह युवक, जो एक बार घर से निकला, तो फिर लौटकर नहीं आया I

“फिर क्या हुआ ? ” किसान और उसकी युवा पत्नी ने बढ़े आग्रह से पूछा I युवती की हथेली पर अभी भी वे जर्रे रखे थे, जिन्हें वह खेत में से उठा लायी थी I

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